Wednesday, September 7, 2011

भगवान की आकृति

बिना आकृति रंग रूप के होते है भगवान , यह है सभी धर्मो का सामूहिक सोच , नाम अलग अलग है क्योंकि भाषाएँ अलग अलग हुई । मतलब कोई आकृति , रंग , रूप ,, कुछ नही है भगवान !!!! ऐसा कैसे हो सकता है जो सब कुछ है , सब कुछ में है वो कुछ नहीं !!!!!! ऋग्वेद की मान्यता के अनुसार सबसे पहले ( पुराने समय ) जिसकी पूजा होती थी वह है " अग्नि " , क्या है अग्नि - ... उर्जा ..या द्रव्य का उर्जा में परिवर्तन की प्रक्रिया ॥ हमारी आत्मा भी उर्जा का रूप है जो मरने के बाद परमात्मा ( परम उर्जा ) में जा के मिल जाती है । ज़रा विज्ञानं की दृष्टी से देखें - " अग्नि का स्वरुप " इसी लिए हिदू समाज मरने के बाद अग्नि में मृत शारीर को डाल देता है , अग्नि ( इस्वर )को प्रमाण मान कर शादी करता है , यज्ञ ( हवन) भी अग्नि में करता है । यहाँ तक की सूर्य भी अग्नि का स्वरुप है । जिससे लोग पैदा होते है ( सेक्स ) भी अग्नि का स्वरुप है , जब मनुष्य सेक्स करता है तो अग्नि सामान उर्जा द्रव्य ( मास ) में परिवर्तित हो कर जीवन की सुरुआत करती है ।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी जो सूत्र दिया वो यह है की ..द्रव्य का उर्जा में परिवर्तन असाधारण है।
समाज की भलाई के के लिए ..और आजकल की धार्मिक प्रतियोगीता को देखते हुए मैंने कुछ वैदिक तथ्यों के आधार पैर यह विचार लिखा ..

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